रामायण हमें बतलाती है कि हमारे दिन भर के कार्यों का उद्देश्य केवल ईश्वर की प्रसन्नता होना चाहिए:-पूज्य संत डॉ. विवेकनिष्ठ स्वामी जी

Jansampark Khabar
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धार ब्यूरो चीफ इकबाल खत्री

    संगीतमय श्री रामचरितमानस कथा के तीसरे दिन बीएपीएस श्री स्वामीनारायण मंदिर कापसी फाटा कुक्षी में कथा वक्ता डॉ विवेकनिष्ठ स्वामीजी ने भगवान राम के वनवास जाने के बाद घर लौटे भरतजी के मन की पीड़ा  का वर्णन करते हुए बतलाया कि भरतजी रोते हुए भारी मन से कहते हैं कि मेरा मन हो रहा है कि मैं ऐसी  कुलघातनी एवं पिताजी के साथ छल करने वाली मां का वध कर दू, लेकिन मेरे इस कार्य से मेरे बड़े भाई प्रभु श्री राम दुखी होंगे इसलिए मैं यह कार्य नहीं कर सकता हूं। यह प्रसंग हमें जीवन में यह शिक्षा देता है कि हमें सदैव ऐसे कार्य करना चाहिए जिससे ईश्वर की प्रसन्नता हो। अगर  हर व्यापारी अपने ग्राहक में ईश्वर को देखे उसे प्रसन्न करने की कोशिश करें तो बेईमानी और मिलावट बंद हो जाए, डॉक्टर  प्रत्येक मरीज मे ईश्वर को देखें तो  मरीज का हित हो जाए, सभी व्यक्ति अगर जीवन में यह सोच ले  कि मुझे केवल ईश्वर की प्रसन्नता हेतु कार्य करना है तो इस देश से बेईमानी, मिलावट, झूठ इत्यादि हर समस्या का समाधान हो जाए ।

रामायण का प्रत्येक पात्र हमें जीवन में सत्यता एवं ईमानदारी का संदेश देता है। 

माता सुमित्रा ने अपने पुत्र लक्ष्मण जी के बड़े भाई प्रभु श्री राम की सेवा के लिए  पुत्र लक्ष्मणजी को वन में जाने का आदेश कर दिया, एक मां ने प्रभु की सेवा के लिए अपने पुत्र का त्याग कर दिया ।

इसी प्रकार  *आज के इस कलयुग में 1200 से अधिक माताओ ने अपने पुत्रों का भगवान स्वामीनारायण एवं बीएपीएस संप्रदाय के प्रकट श्रीहरि गुरु परंपरा के सच्चे संतों की सेवा* के लिए अपने पुत्रों का त्याग कर दिया। इस कलयुग में इस त्याग से बढ़कर और क्या त्याग हो सकता है। 

माता सीता ने अपने पतिव्रत धर्म के पालन के लिए राजमहल, सुख- वैभव सब त्याग दिया  और अपने पति के साथ वन में चली गई। जो कि आदर्श पत्नी का उदाहरण है, की चाहे जैसी परिस्थिति हो सदैव अपने पति का साथ निभाना चाहिए।

 माता कौशल्या ने भी अपने पुत्र राम जी  को पिता की आज्ञा पालन करने के लिए सहर्ष  माथे पर तिलक लगाकर वन में वनवास के लिए जाने के लिए भेज दिया। जिससे यह संदेश दिया है कि पुत्रों को सदैव अपने पिता की आज्ञा में रहना चाहिए और पत्नी को सदैव अपने पति की आज्ञा पूर्ण करने में सहयोग करना चाहिए। 

वन विचरण में मारीच एवं रावण ने जो छल कपट का  प्रपंच रचा उसमें  आकर माता  सीता ने प्रभु श्री राम को स्वर्णमृग लाने के लिए भेजा, यह प्रसंग हमें यह संदेश देता  है कि कभी भी किसी भी परिस्थिति में हमें किसी भी प्रकार के लालच में नहीं आना चाहिए। मदद को जाते भाई लक्ष्मण ने जो लक्ष्मण रेखा खींची थी अगर वह लक्ष्मण रेखा माता सीता ने नहीं लांघी होती तो यह घटना नहीं घटित होती, इससे हमें यह संदेश मिलता है की नारी  जब तक अपनी लक्ष्मण रेखा में रहेगी वह सुरक्षित है, जब - जब लक्ष्मण रेखा लांघी जाएगी तब तब ऐसी  विषम  परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा।

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